जब आँखें बंद की थी मैंने
तब तुम थी
आँखें खुली, तो हुई तुम गायब
लुकाछुपी में थी तुम माहिर
अब सोचता हूँ मैं
कि तुम सपना तो नहीं!
अब नींद आई तो
सहम के करवटें बदल लेता हूँ
ये सोच के,
कि सपनों में टकराये ना अखियाँ हमारी!
Copyright @ Ajay Pai 2016
Image courtesy : Aj's album.
poem
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