कबूल कबूल कबूल
से शूरू हुई थी
कहानी उनकी, मद्धम मद्धम
बदलते गए मौसम
खुशहाल थी ज़िन्दगी
फिर एक दिन
आई शाम साँवरी इतराती
अँधेरा फैलाते हुए
गरज के बरसने लगे अंगारों की तरह
तलाक़ तलाक़ तलाक़
अब साँसें उनकी
फिर जो हुआ न पूछो, ग़ालिब
रातें सुलगती नहीं थी उनकी
और सवेरा धुंधला सा था
Copyright @ Ajay Pai 2017
Image Courtesy: Pexels
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