Monday, November 21, 2016

नशा - Intoxication

साहिबा !

उन  होंटों में ऐसा नशा नहीं है
कि हम डगमगा जाए

नशा , तो दिल के टूटने से होता है 
बिखर के समेटने में होता है 
 रूह काँप उठती है 
होश गुम जाता है 
और, हंसी अश्क़ में ढल जाती है!

ये , नशा नहीं तो और क्या है ?



Copyright @ Ajay Pai 2016
Image courtesy : AJ's personal archive

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