करम - Fate

Sunday, January 29, 2017

  जकड के ले चला हूँ 
आज  में उस लम्हे को, ग़ालिब
वहाँ,  जहां से शुरू हुआ था ये सिलसिला

पर जब  पहुंचा वहाँ तो समझा
की धुँधला गया था मेरा  कल
और आज गुज़र गया है कल की याद में
जकड़ा हुआ वो  लम्हा गायब हुआ हथैली में  से ऐसे
की बन के रह गया है आज वो सिर्फ एक नज़्म !

अब बरसात के उन दिनों में
जब अकेलापन तड़पाता है
तो किताब खोल के पढ़ लेता  हूँ
उस नज़्म को एक बार
और हंस लेता हूँ अपने फूटे करम पर !




















Copyright @ Ajay Pai 2017

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