तब आई वो
इतराते, मुस्काते
तो अखियां छलक गई
और दिल काँप उठा
उसकी नज़ाकत
उसका प्यार
और उसके ज़हरीले धोखे
नज़र मुझे आए
फिर भी करता हूँ प्यार उससे
गहरा, जितना है ये नशा
घुली है वो नस -नस में मेरी
जैसे हो ज़हर
पीउँगा तब तक,जब तक होश न रहे
और
आग़ोश में न ले वो मुझको
पिऊंगा में
टोको न कोई, रोको न कोई
आएगी वो एक दिन
जनाज़े पे मेरे
देखूँगा में तब
क्या लिपटी होगी वो कोरे सफ़ेद में
या होगी वो लिपटी रंगीन गुलाल में
Copyright @ Ajay Pai 22nd May 2017
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