रू-ब -रू
ये घुंघुरू जब थिरक उठते हैं
लगता है मुझे कि
नाच रहा है तू बस मेरे लिए ।
क्या तू है शिव
शरीर जिसका आधा नर
और है दूजा नारी?
क्या तुझसे ही सृष्टि है शुरू
और प्रलय भी?
सोचता हूँ मैं अक्सर
शिव के क्यूँ हैं ये दो रूप ?
एक समुन्दर सा भीभत्स
दूजा झरने जैसा शाँत
है कौन सा तेरा निज स्वरूप ।
अगर है तू शक्ति, तो हूँ मैं शिव
रू-ब -रू होता हूँ तुझसे
तो झूम के नाचता है ये मन बावरा
जैसे हो दो प्रेमी ।
शायद होंगें हम
एक रूह और एक जान ।
ये घुंघुरू जब थिरक उठते हैं
लगता है मुझे कि
नाच रहा है तू बस मेरे लिए ।
क्या तू है शिव
शरीर जिसका आधा नर
और है दूजा नारी?
क्या तुझसे ही सृष्टि है शुरू
और प्रलय भी?
सोचता हूँ मैं अक्सर
शिव के क्यूँ हैं ये दो रूप ?
एक समुन्दर सा भीभत्स
दूजा झरने जैसा शाँत
है कौन सा तेरा निज स्वरूप ।
अगर है तू शक्ति, तो हूँ मैं शिव
रू-ब -रू होता हूँ तुझसे
तो झूम के नाचता है ये मन बावरा
जैसे हो दो प्रेमी ।
शायद होंगें हम
एक रूह और एक जान ।
Image courtesy : ardhanareeswaran (image does not belong to me)
Poem copyright +Ajay Pai 8th March 2018