जकड के ले चला हूँ
आज में उस लम्हे को, ग़ालिब
वहाँ, जहां से शुरू हुआ था ये सिलसिला
पर जब पहुंचा वहाँ तो समझा
की धुँधला गया था मेरा कल
और आज गुज़र गया है कल की याद में
जकड़ा हुआ वो लम्हा गायब हुआ हथैली में से ऐसे
की बन के रह गया है आज वो सिर्फ एक नज़्म !
अब बरसात के उन दिनों में
जब अकेलापन तड़पाता है
तो किताब खोल के पढ़ लेता हूँ
उस नज़्म को एक बार
और हंस लेता हूँ अपने फूटे करम पर !
Copyright @ Ajay Pai 2017

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